एक रात के साये में
थोड़ी से परछाई में,
खोज रहा था ख़ुद को वो
मांग रहा था जीवन वो,
खुली आँखों में था वो सपना
मंजिल दूर किनारे और तिनका,
सिमटी हाथो की रेखाएं
कहती उसको चलते जाए,
नहीं अकेला था में आया
में और मेरा हमसाया..
थोड़ी से परछाई में,
खोज रहा था ख़ुद को वो
मांग रहा था जीवन वो,
खुली आँखों में था वो सपना
मंजिल दूर किनारे और तिनका,
सिमटी हाथो की रेखाएं
कहती उसको चलते जाए,
नहीं अकेला था में आया
में और मेरा हमसाया..